कोरोना के खतरे से बचाव के लिए बच्चों का अवश्य करवाएं स्वर्ण प्राशन- क्षेत्रीय आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी
नीमा स्वास्थ्य शिविर में होगा निशुल्क स्वर्ण प्राशन - डॉ. उमेश भटेले
इटावा।।चिकित्सा के क्षेत्र में आयुर्वेद का विशेष महत्व है और लोगों ने कोरोना काल में इसका एहसास भी किया है। आयुर्वेदिक दवाइयों के सेवन से लोगों को बेहतर उपचार व प्रतिरोधक क्षमता मिली है। बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए स्वर्णप्राशन बहुत ही आवश्यक है यह कहना है क्षेत्रीय आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी डॉ. कप्तान सिंह का । डॉ सिंह ने बताया कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के लिए अपने बच्चों का स्वर्णप्राशन अवश्य करवाएं।
डॉ. सिंह ने कहा बच्चों को तीसरी लहर से बचाने के लिए आयुष चिकित्सालयों में नि:शुल्क आयुष किट भी वितरित की जा रही है। इसमें आयुष 64 अगस्त हरीतकी , संशमनी वटी , अणु तेल सम्मिलित है। उन्होंने बताया हर ब्लॉक में आयुष चिकित्सालय हैं वहां पर नि:शुल्क आयुष किट प्राप्त की जा सकती है। इस आयुष किट से बच्चों को किसी भी तरह का साइड इफेक्ट नहीं होता है।
नीमा फाउंडेशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. उमेश भटेले ने बताया स्वर्ण प्राशन के द्वारा बच्चों को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाया जा सकता है। क्योंकि स्वर्णप्राशन के प्रयोग से विकृत कोशिकाओं को पुनः सक्रिय कर जीवंत बनाया जा सकता है। याददाश्त और एकाग्रता बढ़ाने के लिए भी स्वर्ण प्राशन बच्चों के लिए लाभदायक होता है। शून्य वर्ष से 16 वर्ष तक के बच्चों का स्वर्ण प्राशन कराया जा सकता है।
-स्वर्णप्राशन के लाभ-
* ब्लड सर्कुलेशन अच्छा रहता है।
* हृदय कोशिकाओं को शक्ति प्रदान करता है।
* शरीर में अनेक प्रकार के विषैले पदार्थों को दूर करता है।
* शारीरिक में सूजन को रोकता है।
* याददाश्त और एकाग्रता को बढ़ाता है।
* शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है।
* स्वर्णप्राशन विशेष पुष्प नक्षत्र में ही करवाया जाता है।
* छोटे बच्चों को सरल रूप ड्रॉप में भी दिया जा सकता है।
डॉ. भटेले ने बताया इटावा महोत्सव में लगे नीमा फाउंडेशन स्वास्थ्य शिविर में 22 दिसंबर को नि:शुल्क स्वर्ण राशन कराया जाएगा। इच्छुक अभिभावक अपने बच्चों को बेहतर प्रतिरोधक क्षमता के लिए कैंप में आकर स्वर्ण प्राशन करवा सकते हैं। उन्होंने बताया आयुर्वेद पद्धति में स्वर्ण प्राशन बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में बहुत ही सहायक तो होता ही है शारीरिक और मानसिक रूप से भी बच्चे के लिए लाभ कर होता है।
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