उत्तर प्रदेश न्यूज21संवाददाता
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पुत्र की तरह पुत्री भी परिवार की सदस्य होती है चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित। कोर्ट ने कहा कि जब हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित सेवा नियमावली के अविवाहित शब्द को लिंग के आधार पर भेद करने वाला मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया है तो पुत्री के आधार पर आश्रित की नियुक्ति पर विचार किया जाएगा, इसके लिए नियम में संशोधन की आवश्यकता नहीं है।
इसी के साथ कोर्ट ने याची के विवाहित होने के आधार पर मृतक आश्रित के रूप में नियुक्ति देने से इनकार करने के बीएसए प्रयागराज के आदेश को रद्द कर दिया है और मामले में दो माह में निर्णय लेने का निर्देश दिया है।कोर्ट ने कहा कि अविवाहित शब्द को असंवैधानिक करार देने के बाद नियमावली में पुत्री शब्द बचा है। तो बीएसए विवाहित पुत्री को नियम न बदले जाने के आधार पर नियुक्ति देने से इनकार नही कर सकता है। शब्द हटने से नियम बदलने की जरूरत ही नहीं है।
यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने मंजुल श्रीवास्तव की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता घनश्याम मौर्य ने बहस की। एडवोकेट घनश्याम मौर्य का कहना था कि विमला श्रीवास्तव केस में कोर्ट ने नियमावली में अविवाहित शब्द को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है इसलिए विवाहित पुत्री को आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि बीएसए ने कोर्ट के फैसले के विपरीत आदेश दिया है, जो अवैध है।सरकार की तरफ से कहा गया कि असंवैधानिक है लेकिन नियम सरकार ने अभी बदला नहीं है इसलिए विवाहित पुत्री को नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं है। याची की मां प्राइमरी स्कूल चाका में प्रधानाध्यापिका थीं। सेवा काल में उनका निधन हो गया। उसके पिता बेरोजगार हैं। मां की मौत के बाद जीवनयापन का संकट उत्पन्न हो गया है। उनकी तीन बेटियां हैं। सबकी शादी हो चुकी है। याची ने आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग की, जिसे अस्वीकार कर दिया गया।
एक टिप्पणी भेजें
If You have any doubts, Please let me know