संप्रग सरकार कृषि बाजार को निजी क्षेत्र के लिए खोलना चाहती थी
संप्रग सरकार में कृषि मंत्री शरद पवार ने 2006 में एक इंटरव्यू में कहा था कि सरकार एपीएमसी की व्यवस्था खत्म कर कृषि बाजार को निजी क्षेत्र के लिए खोलना चाहती है। इसके लिए कई राज्य तैयार हैं। मोदी सरकार ने कभी नहीं कहा कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म करने जा रही है। हाथ कंगन को आरसी क्या...। सरकार ने पंजाब और हरियाणा में तय तारीख से पहले ही धान की सरकारी खरीद शुरू कर दी है।कोई भी सरकार समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म नहीं कर सकती
जब तक देश के 70-80 फीसद लोगों को दो रुपये किलो गेहूं और तीन रुपये किलो का चावल देने की जरूरत बनी रहेगी, मोदी क्या कोई भी सरकार समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म नहीं कर सकती। इसके अलावा अन्न के सुरक्षित भंडार के लिए सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज की खरीद करनी ही पड़ेगी। रही बात छोटे किसानों की तो यही लोग वर्षों से हल्ला मचा रहे थे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा तो केवल बड़े काश्तकारों को मिलता है
किसान अपनी उपज का दाम फसल लगाने से पहले ही तय करने का अनुबंध कर सकता हैछोटे काश्तकारों के पास तो इतना भी पैसा नहीं होता कि वे अपनी फसल मंडी ले जाने का खर्च उठा सकें। नए कानून में यह व्यवस्था है कि किसान अपनी उपज का दाम फसल लगाने से पहले ही तय करने का अनुबंध कर सकता है। फसल होने पर दाम गिर गए तो भी उसे तय दाम ही मिलेगा और वह भी तीन दिन के भीतर। दाम बढ़ जाए तो वह दाम बढ़ाने के लिए सौदेबाजी कर सकता है। किसान हित की इस व्यवस्था की आलोचना के लिए तर्क दिया जा रहा है कि 80 फीसद किसानों के पास तो दो एकड़ भी जमीन नहीं हैं। इसका जवाब है कि आखिर इन छोटे किसानों को मिलकर कृषक उपज संगठन बनाने से कौन रोक रहा है? अभी छोटे पैमाने पर ऐसा हो भी रहा है।
राफेल पर निशाना, सीएए पर मुसलमानों को ढाल बनाया अब किसान के कंधे से बंदूक चलाई जा रही
राफेल सौदे पर राष्ट्रीय सुरक्षा को निशाना बनाया गया। नागरिकता संशोधन कानून पर मुसलमानों को बरगलाकर ढाल बनाया गया और अब किसान के कंधे से बंदूक चलाई जा रही है। सवाल है कि मोदी गलत क्या कर रहे हैं? दरअसल मोदी के आने से पहले भी यह देश आगे तो बढ़ ही रहा था। तो समस्या क्या थी? समस्या यह थी कि देश ठहराव का शिकार था। लोगों की उम्मीद का स्तर इतना कम कर दिया गया था कि लोग अपनी गरीबी-बदहाली में संतुष्ट थे।
संतुष्ट व्यक्ति ठहर जाता है, असंतुष्ट गतिशील होता है
संतुष्ट व्यक्ति हो या समाज, वह ठहर जाता है। असंतुष्ट गतिशील होता है। मोदी को यह पता है कि ठहरा हुआ समाज समृद्ध नहीं हो सकता। उनकी नजर समाज की समृद्धि पर है। मोदी इस ठहरे हुए पानी जैसे समाज में बदलाव के पत्थर फेंक रहे हैं। उससे हलचल हो रही है। इससे यथास्थिति को पालने-पोसने वालों को अपनी जमीन खिसकती हुई नजर आ रही है। मोदी लोगों की अपेक्षा बढ़ा रहे हैं। बार-बार कह रहे हैं कि जो मिला है, उससे संतुष्ट मत हो जाओ।
जो देश के लिए ठीक लगता है, उसे करने का जोखिम लेना मोदी का स्वभाव बन गया
मोदी विरोधियों की समस्या यह है कि मोदी ठहरने को तैयार नहीं है। अब बस, उनके शब्दकोश में नहीं है। किसानों के बारे में जो कानून बना है, उसे बनाने की बातें तो दशकों से हो रही थीं, लेकिन किसी प्रधानमंत्री ने इसे करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई। नेता और दल अक्सर बदलाव से डरते हैं, क्योंकि बदलाव अनिश्चितता का जोखिम लेकर आता है। राजनीतिक नफे-नुकसान की परवाह किए बिना जो देश के लिए ठीक लगता है, उसे करने का जोखिम लेना मोदी का स्वभाव बन गया है या यह कहें कि यह उनकी स्वाभाविक वृत्ति है।
मोदी विरोधी धीरे-धीरे हीनभावना का शिकार हो गए हैं। हीनभावना से हताशा पैदा हो रही है। इंडिया गेट पर ट्रैक्टर जलाकर भाग जाना उसी हताशा का प्रतीक है। शरद पवार के इंटरव्यू के मुताबिक 2006 में इन कृषि सुधारों के लिए तैयार राज्यों में पंजाब भी था, पर आज वह विरोध में है।
कृषि प्रधान देश की तरक्की का रास्ता खेतों, खलिहानों और किसानों से होकर जाता है
मोदी सरकार के अध्यादेश के मुताबिक महाराष्ट्र सरकार शासनादेश जारी कर चुकी है। क्या तब कांग्रेसी सो रहे थे? अक्सर यह देखा गया है कि हीनभावना से ग्रस्त लोग राजनीति में तेजी से दौड़ते हैं, पर थोड़ी देर में हांफने लगते हैं। कांग्रेस के साथ यही हो रहा है। किसानों से संबंधित नए कानून कृषि के क्षेत्र में एक नई सुबह लेकर आएंगे। साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य अब हासिल हो सकता है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश की तरक्की का रास्ता उसके खेतों, खलिहानों और किसानों से ही होकर जाता है। यह मानते तो सभी हैं, पर उस दिशा में बड़े बदलाव करने का साहस प्रधानमंत्री मोदी ने दिखाया है।
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