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सिपाही से एसडीएम बने श्याम बाबू की नियुक्ति निरस्त, फर्जी जाति प्रमाण पत्र लगाने का आरोप।

उत्तर प्रदेश न्यूज 21
गाजीपुर बलिया:अनुसूचित जनजाति (एसटी) के प्रमाण पत्र के आधार पर 2016 की पीसीएस में चयनित होकर सिपाही से एसडीएम बने जिले के बैरिया तहसील क्षेत्र के इब्राहिमाबाद उपरवार निवासी श्याम बाबू की नियुक्ति निरस्त कर दी गयी है। तमाम स्तर पर हुई जांच में प्रमाण पत्र फर्जी साबित होने के बाद अपर मुख्य सचिव ने यह आदेश जारी किया है।
प्रयागराज में सिपाही के पद पर तैनात श्याम बाबू का 2016 में पीसीएस में चयन हुआ था। श्याम बाबू की तैनाती बतौर उप जिलाधिकारी (परिवीक्षाधीन) संतकबीर नगर में थी। आदेश के बाद उन्हें कार्यमुक्त दिया गया है। संतकबीर नगर के जिलाधिकारी रवीश गुप्ता ने श्याम बाबू जिले में बतौर उप जिलाधिकारी (परिवीधीन) तैनात थे। नियुक्ति विभाग से पत्र आया था कि गलत प्रमाण पत्रों के आधार पर उनका चयन निरस्त कर दिया गया है। शासन के निर्देश के बाद श्याम बाबू को जुलाई में ही तत्काल प्रभाव से कार्यमुक्त कर दिया गया था। एसटी का प्रमाण पत्र लगाया था
श्याम बाबू ने इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में सिपाही रहते हुए वर्ष 2016 में पीसीएस की मेरिट सूची में अपनी जगह बनायी। गोंड जाति के श्याम बाबू ने एसटी का प्रमाण पत्र लगाया था। नियुक्ति के बाद मूल आदिवासी जनजाति कल्याण संस्था गोरखपुर के अध्यक्ष विजय बहादुर चौधरी ने श्याम बाबू के पक्ष में जिला स्तरीय जाति प्रमाण पत्र सत्यापन समिति की ओर से जून 2019 में जारी आदेश को निरस्त करने के लिए मंडलीय अपीलीय फोरम में अपील की। इस सम्बंध में कमश्निर की अध्यक्षता में मार्च 2020 में बैठक हुई। इसमें बलिया के सीआरओ प्रवरशील बरनवाल, उप निदेशक पंचायत राम जियावन व समाज कल्याण के उप निदेशक सुरेश चंद्र के साथ ही अपीलकर्ता व श्याम बाबू भी मौजूद हुए। यहां शिकायतकर्ता ने कहा कि श्याम बाबू का एसटी का प्रमाण पत्र हेराफेरी पर आधारित है। 

तहसीलदार ने भी श्याम बाबू एसटी नहीं माना
बैरिया के तहसीलदार ने अपनी आख्या में श्याम बाबू को एसटी का नहीं माना है। यह भी बताया कि उच्च न्यायालय में दायर याचिका के जवाब में बलिया के डीएम व बांसडीह तहसीलदार की ओर से प्रतिशपथ पत्र दाखिल किया गया है कि बलिया में जनजाति नहीं पायी जाती है। नवम्बर 2017 को मंडलीय अपीलीय फोरम में भी कहा गया है कि गोंड जनजाति केवल उनके लिए है जो कैमूर अथवा झांसी मंडल से वस्थिापित होकर आए हैं न कि बलिया में पहले से निवास कर रहे हैं। इसके अलावा भी शिकायतकर्ता ने तहसील व जिला स्तर से जारी रिपार्ट का हवाला देते हुए श्याम बाबू के एसटी प्रमाण पत्र को फर्जी बताया।

गांव वालों से लिया गया बयान  
अपीलीय फोरम ने स्थलीय जांच आख्या का भी परीक्षण किया। इसमें श्याम बाबू के गांव के अलग-अलग लोगों का बयान लिया गया है। लोगों ने बताया है कि श्याम बाबू व उनके पूर्वज कई पुश्तों से इब्राहिमाबाद में ही रहते हैं। किसी दूसरे जिले से नहीं आए हैं। जबकि शासनादेश में स्पष्ट है कि मर्जिापुर (अब सोनभद्र) जिले के कैमूर माला को छोड़कर उत्तर प्रदेश में गोंड निवास नहीं करते हैं। स्थलीय सत्यापन के दौरान गांव के लोगों ने यह भी बताया कि श्याम बाबू के पूर्वजों का पेशा खेती-बारी, मजदूरी व भूजा भूजने का है। स्थानीय स्तर पर भूजा भूजने का काम भड़भूजा करते थे। इसका गोंड जाति से कोई सम्बंध नहीं हैं क्योंकि यह पिछड़ी जाति में है।

मंडलीय अपीलीय फोरम द्वारा उपलब्ध कराए गए निर्णय के आधार पर अपर मुख्य सचिव मुकुल सिंहल ने अपने आदेश में कहा है कि जिस आधार पर श्याम बाबू का चयन पीसीएस परीक्षा में हुआ था, वह आधार पर दूषित व कपटपूर्ण है। लिहाजा, राज्यपाल लोक सेवा आयोग (उत्तर प्रदेश, प्रयागराज) द्वारा श्याम बाबू की एसडीएम (परिवीक्षाधीन) के पद पर की गयी मौलिक नियुक्ति को निरस्त करने का आदेश प्रदान करते हैं।

प्रमाण पत्र को रिश्तेेदार की लगायी थी खतौनी
बलिया। एसटी का प्रमाण पत्र जारी कराने के लिए श्याम बाबू ने खुद की बजाय अपने एक रिश्तेदार की खतौनी लगायी थी। बैरिया तहसीलदार ने अपनी जांच आख्या में कहा है कि श्याम बाबू ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि उसके पूर्वज भूमिहीन हैं। लिहाजा अपने रिश्तेदार गोन्हियाछपरा निवासी परमानंद सााह के पूर्वजों की खतौनी लगाकर एसटी का प्रमाण पत्र जारी कराया है। जांच आख्या में यह भी उल्लेख किया गया है कि किसी व्यक्ति की जाति का निर्धारण उसके पिता की जाति से होता है, रिश्तेदार की जाति से नहीं। ऐसे में श्याम बाबू द्वारा अपनी जाति के सम्बंध में जो प्रमाण पत्र प्रस्तुत किए गए हैं वे शासनादेशों के आधारों को पूर्ण नहीं कर रहे हैं। उनके टीसी प्रमाण पत्रव परिवार रजिस्टर की नकल 1950 के राष्ट्रपति के आदेश के बहुत बाद के हैं।

सपा सरकार के आदेश को हाईकोर्ट ने किया था स्थगित
श्याम बाबू के मामले की जांच के बाद अपनी रिपोर्ट में बैरिया तहसीलदार ने विभन्नि तथ्यों का हवाला दिया है। कहा है कि संविधान में एससी व एसटी की कोई परिभाषा नहीं दी गयी है। लेकिन राष्ट्रपति को यह शक्ति दी गयी है कि वे प्रत्येक राज्य के राज्यपाल से परामर्श कर एक सूची बनाएं। राज्य सरकार को यह अधिकार नहीं है कि किसी जाति को एससी या एसटी में शामिल करे।। पूर्व में सपा सरकार द्वारा 16 अन्य पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का आदेश जारी किया गया था लेकिन उच्च न्यायालय द्वारा उसे स्थगित कर दिया गया है। धनगर जाति को भी एससी में शामिल करने के राज्य सरकार के फैसले को उच्च न्यायालय द्वारा स्थगित कर दिया गया है, जिसका आधार यह बताया गया है कि एससी-एसटी का लाभ केवल उन्हीं जातियों को मिल सकता है जो केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित कर दी गयी है।

बलिया के गोंड अनुसूचित जनजाति नहीं
जांच रिपोर्ट में मई 2018 के तत्कालीन बलिया डीएम के पत्र का भी हवाला दिया गया है। इसमें कहा गया है कि बलिया जिला में भुर्जी, भुजवा, भड़भूजा, भूज, कान्दू, कसौधन, कहार जातियां अन्य पिछड़ा वर्ग में आती है। पूर्व में डीएम की अध्यक्षता में जिला कास्ट स्क्रूटनी कमेटी की बैठकों में नर्णिय हो चुका है कि भुर्जी, भुजवा, भड़भूजा, जन्हिें गोंड कहकर पुकारा जाता है, अनुसूचित जनजाति गोंड नहीं हैं। अक्तूबर 2010 के शसनादेश में भी उल्लेख है कि प्रदेश के कुछ भागों में भुर्जी, भुजवा, भड़भूजा, जन्हिें स्थानीय भाषा में गोंड जाति भी कहा जाता है और जो पिछड़े वर्ग में आते है, उन्हें कुछ स्थानों पर एसटी का प्रमाण पत्र जारी किया गया है, जो गलत है।

प्रमाण पत्र जारी करने वालों पर भी कार्रवाई 
अपर मुख्य सचिव ने अपने आदेश में श्याम बाबू को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी करने वालों के खिलाफ भी अलग से कार्रवाई को कहा है। लिखा है कि अनियमित तरीके से जारी किए गए प्रमाण पत्र के आधार पर ही श्याम बाबू द्वारा एसडीएम का पद प्राप्त कर लिया गया है। इस आदेश की एक प्रति सम्बंधित नियुक्ति विभाग व लोक सेवा आयोग उप्र को उपलब्ध करायी जाय। सभी सम्बंधित पक्षों को आदेश की प्रति उपलब्ध करा दी जाए। लिखा है कि श्याम बाबू को अनियमित तरीके से एसटी प्रमाण पत्र जारी करने वाले तहसीलदार व अन्य सम्बंधित कर्मचारियों के खिलाफ तत्काल अनुशासनात्मक कार्यवाही करायी जाय।

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