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प्रेम और मित्रता के प्रतीक हैं श्रीकृष्ण -वीरेन्द्र बहादुर सिंह



एक पूरा युग ऐसा बीता कि स्त्री-पुरुष के बीच ऋतुकाल के संवनन के अलावा और कोई संबंध नहीं था। जब मनुष्य ने खेती करना सीखा तो उसके बाद ही स्त्री पुरुष की मददगार, सहायक और मित्र बनी। धीरे-धीरे स्त्री-पुरुष के बीच संवनन के लिए शादी के अलावा साख्यसंबंधों को भी महत्व मिलने लगा।

अगर स्त्री के रूप में श्रीकृष्ण को याद करें तो मन में कृष्ण की अनेक छवियां दृष्टिगोचर होती हैं। माखनचोर कृष्ण तो याद आते ही हैं, पर साथ ही कृष्ण और गोपियों की रासलीला-राधा और कृष्ण का अलौकिक प्रेम और द्रोपदी की चीर को बढ़ाने वाले परम सखा  की छवि भी तुरंत याद जाती है।

कृष्ण के राधा, अन्य गोपियों तथा द्रोपदी के साथ के संबंध मैत्री की चरमसीमा और उत्कृष्टता के प्रतीक हैं। स्त्री-पुरुष के बीच प्रेमी-प्रमिका या पति-पत्नी के संबंधों की ही तरह दोस्ती का भी संबंध महत्वपूर्ण है। महाभारतकाल में गोपियों ने इस मित्रता को बहुत अच्छी तरह निभाया है। पुरुष खेतों में काम करने जाते थे तो गोपियां उनके लिए खाना ले कर जाती थीं। दोनों साथ-साथ खाते, हंसते-मुसकराते हुए बातें करते, साथ ही थोड़ा हंसी-मजाक करते और रूठना-मनाना भी होता था। साफ है इससे जो भाव निकल कर बाहर आता है, वह है मैत्री का भाव। महाभारतकाल के बाद रचे गए संस्कृत साहित्य में धीरे-धीरे स्त्री-पुरुष की सहज निर्मल मित्रता के बदले श्रृंगार, सौंदर्य, प्रेम-विरह और रतिक्रीडा के वर्णन ने स्थान ले लिया। बाकी द्रविड संस्कृति जैसे कल्चर में स्त्री-पुरुष के बीच मुक्त संबंध थे। इसकी नींव भी मित्रता ही थी। आज मित्रता से शुरू हुए संबंध प्रेम और शादी तक पहुंच रहे हैं। मित्र बने स्त्री-पुरुष के बीच जितनी समझ होती है, उतने ही समय तक उनकी मित्रता टिकी रहती है।

शास्त्रें के अनुसार वृंदावन में 108 गोपियां थीं। जिन्हें तीन भागों में बांटा

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