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*मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं है क्योंकि प्रत्येक धर्म मानवता की ही शिक्षा देता है--घनश्याम सिंह वरिष्ठ पत्रकार व त्रिभाषी साहित्यकार*

 
■ *दुनियां में जितने अवतार आए सब ने मानवता की रक्षा के लिए विभिन्न समय पर विभिन्न धर्मों की स्थापना कर मानवतावादी शाश्वत व सामाजिक शिक्षाएं दीं*
■ *मानवता की रक्षा व सुरक्षा के लिए सर्वधर्म समन्वय की प्रबल आवश्यकता*
■ *अगर मानव में मानवता नहीं तो निःसन्देह वह मानव-मानव नहीं*
 "इस संसार में ईश्वर-धर्म और मानवता का अटूट संबंध है ईश्वर और मनुष्य के बीच का यह संबंध पुरातन है जब से इस संसार में सृष्टि की रचना हुई तब से मानवता और धर्म का संबंध रहा है वेद पुराण और पवित्र ग्रंथ बताते हैं कि जब जब इस संसार में परम पावन, परम शक्तिशाली परमोच्च,परमात्मा द्वारा मानव को मानवता का पाठ पढ़ाने के लिए इस धराधाम पर अवतार भेजे गए तब-तब ईश्वर अवतारों ने अपने-अपने कार्यकाल में मानव के मार्गदर्शन के लिए विभिन्न धर्मों की स्थापना कर आध्यात्मिक व नैतिक शिक्षाएं देकर उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाया,निःसन्देह ईश्वर की दृष्टि में मानव से अनमोल कोई वस्तु या कोई रचना नहीं है,इससे यह स्पष्ट है कि ईश्वर का मनुष्य के प्रति सर्वाधिक प्रेम प्रकट हुआ जिसके फलस्वरूप ईश्वर ने मनुष्य को अमूल्य निधियों से सुसज्जित करते हुए अपनी दिव्य शक्तियां प्रदान कीं, पवित्र ग्रंथों में ईश्वर की ओर से ईश्वर अवतारों ने उल्लेखित किया है कि "तेरा सृजन मुझे प्रिय था इसीलिए मैंने तेरी रचना की.., जिसके फलस्वरूप मनुष्य ने सुई से लेकर हवाई जहाज का निर्माण ही नहीं किया बल्कि मनुष्य ने ईश्वर की कृपा के फलस्वरुप  प्राप्त ज्ञान द्वारा पाताल से ब्रह्मांड तक का सफलता पूर्वक सफर किया और हम असंभव को संभव करते हुए चांद तारों तक पहुंच गये, पहले शिक्षा के अभाव ने हमने यह सोचने और समझने में काफी देर लगा दी कि चांद-तारे भी हमारी पृथ्वी की तरह स्थूल धूल,मिट्टी,पहाड़ से बने हैं,पर वहां पृथ्वी की तरह अनमोल,जल,आवोहवा,वनस्पतियां नहीं हैं,पहले हम चांद तारों के बारे में पूर्वाग्रह परिपूर्ण जानकारी रखते थे,पर  ईश्वर अवतारों की कृपा से व उनसे प्राप्त शिक्षाओं द्वारा यह संभव हो सका कि पृथ्वी, समुद्र, अनंत आकाश में विद्यमान चांद,तारे,सितारे समस्त वस्तुएं प्राकृतिक संपदाएं है जिनका मानवता के हित में ईश्वर ने ही निर्माण किया है,निःसन्देह दुनिया की प्रत्येक वस्तु प्राणियों के सदुपयोग  निमित्त ईश्वर ने बनाई है,  ईश्वर ने हमें ज्ञान प्रदान कर यह भी मार्गदर्शन किया है कि हम पर दुनिया की प्रत्येक वस्तु का मानवता के हित में सदुपयोग करें ताकि मानवता की रक्षा सुरक्षा वा पालन हो सके, पर खेद का विषय है कि हम ईश्वर के द्वारा सदुपयोग के लिए प्रदान किए गए अनमोल प्राकृतिक उपहारों को नष्ट करते जा रहे हैं और स्वार्थ के बस अंधे होकर उनका दुरुपयोग कर रहे हैं यह कहां की मानवता है हमें वेद शास्त्रों ने शिक्षा दी है "कि हम जब हम किसी वस्तु का सदुपयोग करते हैं यानी नियमानुसार या कहें विधान के अनुसार उपयोग करते हैं तब हम मानवता पूर्ण कार्य करते हैं जब हम किसी वस्तु का दुरुपयोग करते हैं या विधान से हटकर कार्य करते हैं तब वह दानवता की श्रेणी में आता है,
इसलिए संसार के प्रत्येक मनुष्य को मानवता की रक्षा, सुरक्षा के लिए संकल्प लेकर सतत,संयुक्त प्रयास करना होगा जिसके लिए "सर्वधर्म समन्वय की प्रबल आवश्यकता" है, खेद का विषय है कि आज संपूर्ण संसार में धार्मिक एकता का अभाव दिख रहा है हम धर्मांध होकर अपने-अपने धर्म को केवल धर्म मानते हैं जबकि ऐसा नहीं है हमें देखने को मिलता है कि  स्पष्ट रूप से पवित्र ग्रंथों,वेदों में संसार की एकता और सर्वधर्म समन्वय, विश्व बंधुत्व का वर्णन किया गया है, हम कब समझेंगे कि जिसे हम हिंदी में ईश्वर कहते हैं उसे ही अंग्रेजी में गॉड कहा जाता है तथा अरबी और उर्दू में अल्लाह कहा जाता है, मित्रों अत्यंत पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता के चतुर्थ अध्याय के श्लोक 7/8 में ईश्वर अवतार श्री कृष्ण ने स्पष्ट रूप से मार्गदर्शन किया है  "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे"
    इसी तरह महाकवि संत शिरोमणि तुलसीदास जी ने अपनी कृति रामचरितमानस के बालकांड में भी उल्लिखित किया है-
"जब जब होई धरम कै हानी ।
 बाढहिं असुर अधम अभिमानी।।
 करहिं अनीति जाइ नहीं बरनी ।
 सीदहिं  विप्र  धेनु  सुर धरनी ।
 तब-तब प्रभु धर मनुज शरीरा।
 हरहिं नाथ बहु सज्जन पीरा ।।
   इस संबंध में  प्रख्यात शिक्षाविद व आध्यात्म के गहन विचारक डॉ आर एस यादव बताते हैं कि पवित्र ग्रंथों में सुस्पष्ट है कि मनुष्य अनमोल रत्नों की खान है,शिक्षा ही इसके कोषों को उजागर कर सकती है,मूलतः मानवीय शिक्षा के अभाव में मनुष्य पथभ्रमित हो जाता है और अमानवीय आचरण करने लगता है जिससे मनुष्य अपने वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता है,
  इस तरह हम देखते हैं कि अगर मानव में मानवता नहीं तो निःसन्देह वह मानव-मानव नहीं है,एक मानवता ही ऐसा विलक्षण गुण है जो हमें सभी प्राणियों से महान प्रमाणित करता है,अगर मानवता को मनुष्य का मुकुट कहा जाए तो अति उत्तम होगा,
ओ संसार के मानव बन्धु !
आओ !
हम सब सर्व-धर्म समन्वय,विश्व बंधुत्व की भावना का ह्रदय से अनुकरण करके व समस्त प्रकार के पूर्वाग्रहों का बहिष्कार करते हुए अपने ललाट पर "मानवता" का मुकुट धारण करें ताकि हमारा रचयिता परमपिता परमात्मा हमारा सदैव मार्गदर्शन व सुरक्षा करता रहे। 
          --घनश्याम सिंह
       वरिष्ठ पत्रकार व त्रिभाषी साहित्यकार

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