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जनता चुनाव में कई मुद्दों पर जवाब मांगने को उतावली*

*जनता चुनाव में  कई मुद्दों पर जवाब मांगने को उतावली*

*धन्नासेठों के सुख दुःख में ही शामिल होते नेता आम वोटरों को सिर्फ चुनाव में ही दिखते*

*बिधूना,औरैया।* बिधूना क्षेत्र के चाहे सत्ताधारी दल के नेता हों या अन्य विपक्षी दलों के उन्हें सिर्फ चुनाव के समय ही उन्हे आम जनता की याद आती है वैसे तो चुनाव जीतने हारने के बाद सिर्फ धन्नासेठों के सुख दुःख में शामिल होने तक ही सीमित रह जाते हैं। ऐसे में राजनीतिज्ञों की बेरुखी एवं अपेक्षापूर्ण रवैए से आम जनता आगामी चुनावों में उनसे जवाब मांगने उतावली नजर आ रही है।
यूं तो बिधूना क्षेत्र में सत्ताधारी पार्टी के इटावा सांसद राम शंकर कठेरिया कन्नौज सांसद सुब्रत पाठक राज्यसभा सदस्य गीता शाक्य विधायक विनय शाक्य दिबियापुर क्षेत्र के विधायक एवं कृषि राज्य मंत्री लाखन सिंह राजपूत, पूर्व विधायक शिव प्रसाद यादव व सतीश पाल जैसे प्रमुख दिग्गजों द्वारा अपना खांसा दखल रखा जाता है। वही सपा के पूर्व मंत्री विनोद यादव कक्का, पूर्व सांसद प्रदीप यादव, पूर्व ब्लाक प्रमुख रेखा वर्मा, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्वर्गीय धनीराम वर्मा के पुत्र दिनेश वर्मा वहीं कांग्रेस के अंशू तिवारी, ओंकार सिंह यादव  एडवोकेट , रविंद्र कुमार पांडे एडवोकेट व बसपा के अमर सिंह जाटव , विनोद कुमार आदि  भी क्षेत्र की राजनीति में अपना वर्चस्व कायम करने की जुगते भिड़ाते हैं, लेकिन क्षेत्रीय जनता का दर्द है कि क्षेत्रीय नेताओं को सिर्फ चुनाव के समय ही उनकी याद आती है। चुनाव हारने जीतने के बाद यह नेता ब्रह्म की तरह अंतर्ध्यान हो जाते हैं , और यह जब कभी तभी प्रकट होते हैं। जब या उनकी पार्टियों के कार्यक्रम हो या फिर किसी धन्नासेठों चहेतों के यहां सुख-दुख का मामला हो । आम जनता के यहां चाहे सुख दुःख कुछ भी हो दिग्गजों की झलक उनके गरीब खानों पर कभी नजर नहीं आएगी, सिर्फ वोट के समय ही यह मतदाता भगवान की तरह उन्हें नजर आते हैं, और चुनाव के बाद दूध में पड़ी मक्खी की तरह दूर कर दिए जाते हैं। नेताओं द्वारा आम जनता के साथ लगातार किए जा रहे छलावे का दंश झेल रही क्षेत्रीय जनता इस बार आगामी चुनावों में इन दिग्गजों से अपनी बेरुखी और उपेक्षा का जवाब मांगने को काफी उतावली है। जनता का कहना है कि इस बार वह इन नेताओं से यह भी पूछेंगे कि क्या उनके वोट से धन्ना सेठों के वोट की कीमत अधिक है, और यदि अधिक नहीं है तो फिर उनके प्रति बेरुखी और उपेक्षा क्यों। जनता का दर्द है कि क्या इन नेताओं को धन्नासेठों का दुःख ही दुःख लगता है। आम गरीबों का दुःख नजर नहीं आता है, जो सिर्फ धन्ना सेठों के यहां ही उनके दुःख में शरीक होने जाते हैं। कुछ भी हो इस बार इन नेताओं को जनता के इन सवालों के साथ क्षेत्र के विकास के मुद्दों पर भी जवाब देना ही पड़ेगा।

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