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हिंदी साहित्य पुस्तकालय को किया जा रहा अनदेखा!

*संवाददाता रोहित कुमार सविता पत्रकार उत्तर प्रदेश न्यूज़21 मौरावां उन्नाव*
*जनपद उन्नाव का मौरावां कस्बा आजादी के दीवानों और साहित्य के अनुरागियों के लिये कभी काशी विश्वनाथ कहा जाता था एक शाताब्दी पूर्व स्थापित पुस्तकालय के हालत दिन प्रतिदिन बद्दतर होती जा रही है वर्तमान में लगभग सवा लाख किताबे यहाँ है इनमे बहुत दुर्लभ किताबे भी शामिल हैं इनके रखरखाव की समुचित व्यवस्था नही है यहाँ तक की कर्मचारियों की तनख्वाह आने मे चार चार माह लग जाते है पुस्तकालय में आने वाले अखबारों के भुगतान के लाले पड़ रहे हैं भारत को आजादी दिलाने वाले तमाम स्वत्रंता संग्राम सेनानी इस पुस्तकालय में आते थे देश कि पराधीनता सूत्रधारो की नाक में दम कर देने वाले रण वाकरो को यहाँ आश्रय मिलता था बीसवीं सदी के कवीर निराला के प्रवास का शाची है इसकी दीवारे लगभग 103 वर्ष पूर्व में स्थापित और साधको के त्याग से पुष्पित पल्लवित मौरावां के हिन्दी साहित्य पुस्तकालय मे भावुक साहित्य प्रेमियो के लिये
निराला की विद्रोही सासों का इस पंदन आज भी जिन्दा है किन्तु कालचक्र का उलटफेर ही है कि सवा लाख से अधिक पुस्तको की गौरवमय संस्था को अपने सरंचन में लेना तो दूर शासन से इसे जीवित रहने लायक तक कुछ भी हासिल नहीं हो पा रहा है।*

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