उत्तर प्रदेश न्यूज़21(UPN-21)
अमरीका और ब्रिटेन में शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने नोवल कोरोना वायरस में सैकड़ों बदलाव देखे हैं.
हालांकि इनमें से किसी भी शोध से यह पुष्टि नहीं हो पाई है कि इससे इसके संक्रमण पर क्या असर पड़ेगा और ऐसे वायरस के ख़िलाफ़ वैक्सीन कितनी प्रभावी होगी.
वायरस में बदलाव आना साधारण बात है. सवाल ये है कि इनमें से किन बदलावों का असर संक्रमण की गंभीरता या रफ़्तार पर पड़ता है?
अमरीका में हुए एक शुरुआती रिसर्च में कहा गया है कि नोवल कोरोना वायरस में एक ख़ास बदलाव- D614G ज़्यादा हावी हो रहा है, जिसकी वजह से कोविड 19 बीमारी अधिक संक्रामक हो सकती है. हालांकि यह रिसर्च न तो अभी औपचारिक रूप से प्रकाशित हुई और न ही अभी दूसरे वैज्ञानिकों ने इसकी समीक्षा की है.न्यू मेक्सिको में लॉस ऐलेमॉस नेशनल लैब के शोधकर्ता कोरोना वायरस में हो रहे उन बदलावों को ट्रैक करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे इस वायरस का आकार बदल जाता है. ये रिसर्च ग्लोबल इनिशिएटिव ऑन शेयरिंग ऑल इंफ़्लुएंज़ा डेटा (GISAD) के डेटाबेस के आधार पर की जा रही है| कोरोना के टीके का ब्रिटेन में इंसानों पर परीक्षण शुरू,कोरोना वायरसः कोरोना वायरस का टीका बनाने से दुनिया कैसे चूक गई वैज्ञानिकों ने देखा कि इस ख़ास बदलाव (D614G) की वजह से कोरोना वायरस ज़्यादा तेज़ी से बढ़ता है. लेकिन इसका नतीजा क्या होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है.
इमेज कॉपीरइटAFP 'वायरस में बदलाव कोई बुरी चीज़ नहीं'कोरोना संक्रमित मरीज़ों से जुटाए गए डेटा का विश्लेषण शेफ़ील्ड में ब्रिटेन के शोधकर्ताओं ने भी किया है,उनका कहना है उन्हें पता चला है कि बदले हुए ख़ास कोरोना वायरस (D614G) से संक्रमित लोगों की संख्या ज़्यादा थी. हालांकि उन्हें ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला जिससे ये साबित हो सके कि ऐसे लोग ज़्यादा गंभीर रूप से बीमार होते हैं.यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में हुए एक अन्य अध्ययन ने कोरोना वायरस में हो रहे 198 बदलावों की पहचान की है.
इस शोध में शामिल प्रोफ़ेसर फ्रांस्वा बैलू ने कहा, "वायरस में बदलाव आना अपने आप में एक बुरी बात नहीं है. लेकिन अभी हमारे पास ऐसा कोई प्रमाण भी नहीं है जिससे यह साबित हो कि कोरोना वायरस सामान्य से तेज़ या धीमी गति से बदल रहा है. अब तक हम ये नहीं कह सकते कि सार्स CoV-2 ज़्यादा जानलेवा या संक्रामक हो रहा है वहीं ग्लास्गो यूनिवर्सिटी के कुछ शोधकर्ताओं ने भी कोरोना वायरस के बदलावों का विश्लेषण किया है. इस टीम का कहना है कि ये बदलाव चिंता का विषय नहीं है.
उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि असल में कोरोना वायरस में बदलाव नहीं हुआ है और अभी एक ही तरह के वायरस से कोविड-19 बीमारी फैल रही है.
कोरोना वायरस में हो रहे इन छोटे-छोटे बदलावों पर नज़र रखना और उनका विश्लेषण इसलिए ज़रूरी है क्योंकि इससे वैक्सीन बनाने में मदद मिलेगी.कोविड-19 के लिए अभी कई वैक्सीन बनाने पर काम हो रहा है. लेकिन अगर वायरस में लगातार अलग-अलग तरह के बदलाव होते रहे तो ये कम प्रभावी हो सकती है.
हालांकि अभी ये सारी बातें सिर्फ़ सैद्धांतिक रूप से कही जा सकती हैं. वैज्ञानिकों के पास वायरस के बदलने का प्रभाव साबित करने के लिए अभी पर्याप्त प्रमाण नहीं हैं.
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