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प्रख्यात वैश्विक साहित्यिक संस्था बुलंदी परिवार द्वारा आयोजित होली परिशिष्ट में साहित्य साधक नवीन आर्या प्रस्तुत गीत *होली का हुड़दंग*



*होली का हुड़दंग* 
ये होली का हुडदंग है यारों 
होली का हुड़दंग 
न कोई छोटा न बड़ा
खेलें मिलकर संग 

होली का हुडदंग है यारों 
होली का हुड़दंग 

कहीं थाल अबीर भरी
कहीं रंगों से भरी पिचकारी
कभी तू मुझको रंग लगाए 
कभी रंगों की मेरी बारी  
दुश्मन भी अब दोस्त बनकर
झूमे मस्त मलंग 

ये होली का हुडदंग है यारों 
होली का हुडदंग

कल की फिक्र छोड़कर यारों
इस पल में जीना सीखें
रंगों को जीवन मे अपनाकर 
आओ जीवन जीना सीखें
भूल कर उन ग़मो को यारों
आओ झूमे नाचे संग 

ये होली का हुडदंग है यारों 
होली का हुडदंग

पकवानों के स्वाद में 
समय बीत न जाये बाद में 
कोई ग़ुलाल लगाओ यारों
कोई लगाओ रंग

ये होली का हुडदंग है यारों 
होली का हुडदंग
~~नवीन आर्या ©®नवी
      आगरा

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