*सच्चे जनसेवक नेता पहले पैदल या साइकिल से मांगते थे वोट*
*अब महंगी कारों के काफिले में समर्थकों के साथ करते हैं जनसंपर्क*
*औरैया।* पहले कांग्रेस और फिर समाजवादियों का प्रमुख दुर्ग रहे बिधूना विधानसभा क्षेत्र में पहले के जनप्रतिनिधि पैदल या साइकिल से गांव-गांव जनसंपर्क कर वोट मांगते थे लेकिन अबके नेताओं को उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत देखकर ही प्रत्याशी बनाया जाता है और यही कारण है, कि आज के जनप्रतिनिधि चुनाव आयोग की तमाम पाबंदियों के बावजूद महंगी गाड़ियों के काफिले के साथ गांव गांव जनसंपर्क कर वोट मांगते नजर आ रहे हैं, लेकिन चुनाव हारने जीतने के बाद जनता की हिमायत का दावा करने वाले यह जनप्रतिनिधि 5 वर्षों के लिए फिर ब्रह्म की तरह अंतर्ध्यान हो जाते हैं और जनता अपने को ठगा महसूस कर मन मसोस कर रह जाती है।
बिधूना विधानसभा क्षेत्र 202 पहले कांग्रेस का और बाद में समाजवादियों का प्रमुख दुर्ग के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। हालांकि 2017 की राम लहर में हुए चुनाव में इस सीट पर भाजपा ने अपना परचम फहरा दिया है। देश की आजादी के बाद शुरू हुए विधानसभा चुनावों में इस सीट पर पांच बार विधायक रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय गजेंद्र सिंह ऐसे सच्चे जनसेवक थे जो आर्थिक अभावों के बावजूद भी पैदल या साइकिल से चुनावों में गांव-गांव वोट मांगते थे, वही इसी क्षेत्र से विधायक रहे स्वर्गीय पंडित विजय शंकर उपाध्याय भी क्षेत्र के अधिकांश गांवों में चुनाव में पैदल जनसंपर्क करने के साथ अपने समर्थकों के माध्यम से सिर्फ मतदाताओं तक अपनी अपील के पर्चे भेज कर विधायक बने थे, और इसी तरह पूर्व विधायक स्वर्गीय रामाधार शास्त्री भी पैदल व साइकिल से वोट मांगकर विधायक बनने वाले क्षेत्र के सच्चे जनसेवकों में शुमार हैं। हालांकि आज तस्वीर पूरी तरह बदली हुई नजर आ रही है। अधिकांश प्रमुख राजनीतिक दल उन्हीं नेताओं को अपना प्रत्याशी बनाते हैं जो अधिक मजबूत आर्थिक स्थिति के साथ ही हर स्तर पर प्रतिद्वंद्वियों से मुकाबला करने में सक्षम होते हैं। यही कारण है चुनाव आयोग की तमाम पाबंदियों के बावजूद चल रहे चुनावी घमासान के दौर में क्षेत्र में अधिकांश प्रत्याशी नियम कानून को ठेंगा दिखाते हुए महंगी कारों के बड़े-बड़े काफिलों और समर्थकों की भीड़ के साथ गांव-गांव जनसंपर्क करते नजर आ रहे हैं। गौरतलब बात तो यह है कि पहले के पैदल चलने वाले जनप्रतिनिधि चुनाव जीतने हारने के बाद भी जनता के दु:ख दर्द में शामिल रहते थे, लेकिन आज के नेताओं को सिर्फ चुनाव के समय ही जनता की याद आती है, और चुनाव में हारने जीतने के बाद फिर से यह ब्रह्म की तरह अंतर्ध्यान हो जाते हैं। यही सच्चे जनसेवक नेता पहले पैदल या साइकिल से मांगते थे वोट। गौरतलब बात तो यह है कि पहले के पैदल चलने वाले जनप्रतिनिधि चुनाव जीतने हारने के बाद भी जनता के दु:ख दर्द में शामिल रहते थे, लेकिन आज के नेताओं को सिर्फ चुनाव के समय ही जनता की याद आती है, और चुनाव में हारने जीतने के बाद फिर से यह ब्रह्म की तरह अंतर्ध्यान हो जाते हैं। यही कारण है, कि अपने को हर बार ठगा महसूस करने वाली जनता का इन नेताओं से विश्वास उठता जा रहा है। इसी तरह से भारत सिंह चौहान रिक्शा पर बैठकर औरैया शहर का भ्रमण करते हुए वोट मागते थे। इसके अलावा वह जनता की आवाज बनकर समस्याओं का निराकरण कराने में कभी पीछे नहीं हटते थे। ऐसे नेताओं को जनता आज भी भुला नहीं पा रही है। आज के नेता अपना स्वार्थसिद्ध करने के लिए जनता के बीच जाते है। इसके बाद वह 5 वर्ष के लिए क्षेत्र में समस्याओं का निदान कराना तो दूर की बात है। जनता से संवाद करना भी मुनासिब नहीं समझते हैं।
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