*ध्रुव का चरित्र प्रत्येक बालक-बालिका के लिए अनुकरणीय*
*कस्बा बेला में चल रही श्रीमद् भागवत कथा का संगीतमय प्रसंग सुनकर भाव विभोर हुए श्रोताओं ने जमकर नृत्य किया*
*बेला,औरैया।* ध्रुव का चरित्र प्रत्येक बालक-बालिका के लिए अनुकरणीय है, ध्रुव ने अपनी कठिन साधना के बल पर संसार में सर्वोत्तम स्थान प्राप्त कर लिया, यह कथन-भगवताचार्य विनीत कुमार त्रिपाठी का है, वह कस्बा बेला में समाज सेविका लक्ष्मी बहन व वरिष्ठ समाजसेवी गुरु प्रसाद अग्निहोत्री द्वारा आयोजित श्रीमदभागवत कथा में प्रवचन कर रहे थे।।
श्रीमद् भगवत कथा के प्रसंग में ध्रुव लीला का संगीतमय प्रसंग सुनाते हुए भगवताचार्य विनीत कुमार त्रिपाठी ने बताया कि राजा उत्तानपाद की रानी सुनीति से ध्रुव तथा दूसरी रानी सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए,उत्तानपाद बड़ी रानी सुनीति की अपेक्षा छोटी रानी सुरुचि और उसके पुत्र को ज्यादा प्रेम करते थे। एक बार राजा उत्तानपाद पुत्र ध्रुव को गोद में लेकर बैठे थे तभी वहां सुरुचि आ गई,उसने अपनी सौतन सुनीति के पुत्र ध्रुव को गोद में बैठा देखकर उसने अपमानित कर उतार दिया, किससे ध्रुव को बहुत कष्ट हुआ और उन्होंने पिता से भी ऊंचे स्थान पर विराजमान होने का संकल्प लिया इसके बाद ध्रुव तपस्या करने जंगल में निकल गए और उन्होंने अनवरत अटल तपस्या की,इस दौरान
ध्रुव ने केवल एक बार तीन दिन में कैथा व बेल फल खाकर तपस्या की, फिर उन्होंने वह भी त्याग कर दिया, बाद में प्राणायाम करके सभी चित्त वृत्तियों को वश में कर लिया ,तभी भगवान ने उन्हें आत्मदर्शन दिया,और बेटा कहकर वरदान मांगने को कहा,ध्रुव ने कहा आपने हमें बेटा कह दिया इससे बड़ा क्या वरदान हो सकता है, कहकर ध्रुव ने कहा कि अब आपकी शरण मिल गई कुछ नहीं चाहिए, भगवान ने ध्रुव को गले लगा लिया और वरदान देकर घर जाकर सिंहासन स्वीकार करने को कहा, इसके बाद ध्रुव अपने घर गए और सौतेली मां रानी सुरुचि को प्रथम प्रणाम किया और उनका तप के लिए प्रेरित करने का आभार जताया, इस पर रानी सुरुचि ने ध्रुव के साथ किए गए व्यवहार की भूल स्वीकार की,इस तरह ध्रुव को उनकी अटल साधना के लिए अमरत्व मिला जिसके अनुसार उन्हें स्वर्ग में सर्वोच्च स्थान मिला,
भगवताचार्य विनीत कुमार त्रिपाठी ने कथा के प्रसंग में कहा कि मानवता के कल्याण के लिए परमात्मा का धराधाम पर अवतार होता है, जब कि मनुष्य जन्म लेता है,परमात्मा ने धरती के लोगों का कल्याण करने के लिए विभिन्न युगों में विभन्न रूप धारण किये। उन्होंने कहा कि गर्भवती माताओं को गर्भावस्था में नियम संयंम भजन पूजन आध्यत्म का चिंतन करना चाहिए ताकि ध्रुव जैसे बालक जन्में,उन्होंने कहा कि अब तो भजन कीर्तन को लोग भूल ही गए हैं। इस दौरान चल रही श्रीमद् भागवत कथा का संगीतमय प्रसंग सुनकर भाव विभोर हुए श्रोताओं ने जमकर नृत्य किया।
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