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बीमार होता बुंदेलखंड, कण-कण में पत्थर की धूल, लोगों को जकड़ रहा अस्थमा, सिलकोसिस और टीबी रोग

बीमार होता बुंदेलखंड, कण-कण में पत्थर की धूल, लोगों को जकड़ रहा अस्थमा, सिलकोसिस और टीबी रोग

नवनीत गुप्ता उत्तर प्रदेश न्यूज 21/आल इंडिया प्रेस एसोसिएशन
महोबा:जिले में खनन और स्टोन क्रशर ने बुंदलेखंड को बीमारियों ने जकड़ लिया। खदान में काम करने वाले मजदूरों से लेकर इलाकाई लोग गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं। किसी को अस्थमा तो किसी को टीबी जैसी गंभीर बीमारी है।वहीं, स्टोन की धूल से सिलकोसिस बीमारी का प्रकोप काफी है। इसमें शरीर में एलर्जी होती है। हर घर में बीमारी की दस्तक है। इसके बावजूद मजबूरी में उसी धूल में ग्रामीणों को रहना पड़ रहा है।
गांव के 70 फीसदी लोग बीमार कबरई से सटा हुआ एक डहर्रा गांव है। यहां पर पत्थर मंडी है। गांव से चंद कदम दूर हर दिन पहाड़ों में ब्लास्ट होते हैं। दिन रात डंपर पत्थरों को ढोते हैं और पास में लगे क्रशरों में पत्थरों की कटाई होती है। ये गांव खनन और क्रशर से बेइंतहा प्रभावित है।
गांव निवासी भरत सिंह परिहार बताते हैं कि यहां हर घर में तीन चार लोग बीमार मिलेंगे। किसी को टीबी तो किसी को अस्थमा व सिलकोसिस है। भरत ने बताया कि पूरे गांव की बात करें तो तकरीबन 70 फीसदी लोग बीमार हैं। जिसकी वजह ये खनन और क्रशर से निकलने वाली डस्ट है।डस्ट है।
सांस और त्वचा रोग सबसे अधिक
बुंदलेखंड पर खनन और क्रशर केप्रभाव को लेकर कुछ खास शोध नहीं हुए हैं। मगर सन 2011 में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के एसवीएस राणा, अमित पाल और शेख असदुल्ला का एक अध्ययन जर्नल ऑफ ईकोफिजियोलॉजी एंड ऑक्युपेशनल हेल्थ में प्रकाशित हुआ, जिससे यहां पर स्टोन डस्ट से होने वाली बीमारियों के बारे में अहम जानकारी मिलती है।
अध्ययन के मुताबिक  खदानों और स्टोन क्रशर में काम करने वाले म45.11 फीसदी मजदूर सांस की बीमारी से ग्रसित हैं। 43.33 फीसदी लोग त्वचा रोग, 21.53 फीसदी लोगों की सुनने की क्षमता कम हो जाती है।
14.66 फीसदी लोग दमा और 17.8 फीसदी लोग आंखों की बीमारी से ग्रसित हैं। इसी तरह इलाकाई लोगों पर भी प्रभाव पड़ा है। वो भी इन्हीं बीमारियों से जूझ रहे हैं। ये अध्ययन तीन सौ लोगों पर किया गया था। जो क्रशर चलने वाले इलाकों व वहां काम करने वाले थे।
40 फीसदी लोगों की रेडियोलॉजी रिपोर्ट असामान्य
महात्मा गांधी ग्रामोदय विवि के महेंद्र कुमार उपाध्याय और सूर्यकांत चतुर्वेदी का एक रिसर्च पेपर इंटरनेशनल जर्नल ऑफ साइंस एंड रिसर्च में 2016 में प्रकाशित हुआ था। अध्ययन में बुंदेलखंड के बांदा, भरतकूप और महोबा के कबरई क्षेत्र को शामिल किया गया था।ग्रामीणों (किसान व मजदूर) से बातचीत
हम खेती किसानी केसाथ-साथ खदानों में मजदूरी भी करते हैं। कई वर्षों से सांस की बीमारी है। जब डस्ट की चपेट में आता हूं तो दिक्कत बढ़ जाती है। अब तो जीना भी मुश्किल हो रहा है। - सजीवन, गुगौरा गांव
पूरा जीवन इसी पत्थर की धूल को झेलते-झेलते निकल गया है। मैं सांस और त्वचा रोग से जूझ रहा हूं। हर दिन दिक्कत बढ़ती जा रही है। हम जैसे तमाम लोगों का हाल यही है। - छोटे गुगौरा गांव
पत्थर की धूल और खदान की देन है जो हम आज अस्थमा की बीमारी झेल रहे हैं। एक दशक से ये बीमारी झेल रहे हैं। दवाई लेने का भी कुछ खास असर नहीं पड़ता है। - लाल बिलक्कू, डहर्रा गांव

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