मैं भी हूं मीन सी प्यासी, जल- जीवन मीन का , मेरा जीवन प्यार रे ।सुन्दर मीन को सब कोई चाहे, ना हो रूप तो ना पूछे संसार रे ।अज़ाब-ए-तन्हाई कभी सहती तो कभी रौनकें- महफ़िल बन जाती नारी ।कभी करूं तकरार तो मानी जाती बेमानी, रहूं चुप तो है कद्रदानी ।दी ग़र कभी *सदा*तो नाकाम लौट आई, अहले-जहां को रहती ना ख़बर हमारी ।बंट गए टुकड़े सारे कुछ ना बचा अब बाकी है , ज़िन्दगी भी अब अपनी नहीं पराई सी लगने लगी है हमारी ।कितनी दूर निकल आए हम अब रहा ना कोई अरमान है, वो सब जो लाए थे साथ, खो गया साजो-सामान है ।लौट जाऊं वापिस अब ये मुमकिन नहीं , ढुंढने को घर वापिस मेरे नक्श्पां भी तो नहीं ।
मैं भी हूं मीन सी प्यासी, जल- जीवन मीन का , मेरा जीवन प्यार रे -प्रेम बजाज
अनुराग सिंह (संपादक)
0
Tags
शायरी
إرسال تعليق
If You have any doubts, Please let me know