🧟♀️कोरोना वैश्विक महामारी🧟♀️
"जाने कौन सी ख़ता की इंसानों ने!
कि हो गये कैद खुद,अपने मकानों में!!
ना दौलत की फिकर है,ना शोहरत की।
ना फिकर है दफ़्तर ,और बाजारों की।
ना ही है फिकर अपने प्यारों की।
हर कोई जुटा है खुद को बचाने में।
कि हो गये कैद खुद,अपने मकानों में!!
कोई रोता है,आंचल के लिए,
कोई खाने पानी को तरसता है।
कोई सिर पे अपना सामान लिए।
पैदल ही घर को जाता है।
कहाँ फंस गये आके बेगानों में
"जाने कौन सी ख़ता की इंसानों ने!
कि हो गये कैद खुद,अपने मकानों में!!
उपासना राजपूत (स०अ०)प्रा०वि० हृदयपुरवा औरैया
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